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25 अप्रैल को मनाया जावेगा नगर गौरव दिवस (सिटी डे), ‘‘आदि  शंकराचार्य जी के अवतरण दिवस’’

20 अप्रैल 2023
सिवनी यशो:-  आम नागरिकों को सूचित किया जाता है कि दिनांक 25-04-2023 को मध्यप्रदेश शासन के निर्देश पर नगरपालिका परिषद सिवनी द्वारा गौरव दिवस (सिटी डे) के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया है। सिवनी नगर में आदि शंकराचार्य जी का आगमन हुआ था। आदि शंकराचार्य जी द्वारा सिवनी नगर के प्राचीन ऐतिहासिक मठ मंदिर में शिव लिंग की स्थापना की गई थी, अतः ‘‘आदि  शंकराचार्य जी के अवतरण दिवस’’ ‘‘बैशाख शुक्ल पंचमी’’ तिथि को नगर गौरव दिवस (CityDay) मनाने का परिषद  द्वारा सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया है  जिसका कार्यक्रम मठ मंदिर प्रांगण में दिनांक 25-04-2023 दिन मंगलवार सायं 7 बजे किया जाना है। जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में द्वारिका पीठाधीश्वर श्री शंकराचार्य जी 1008 स्वामी सदानंद जी महाराज होंगे। नगर पालिका परिषद सिवनी नगर की जनता, समस्त जनप्रतिनिधियों, प्रबुध्दजनों एवं मीडिया के साथियों से इस गौरवपूर्ण आयोजन में शामिल होने का अनुरोध करती है। 

आदि शंकराचार्य को भगवान शंकरा का अवतार माना जाता है उनका जन्म दक्षिण भारत के केरल में अवस्थित निम्बूदरीपाद ब्राह्मणों के ‘कालडी़ ग्राम’ में 788 ई. में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय उत्तर भारत में व्यतीत किया। आदि शंकराचार्य ने अपने सद्गुरू से शास्त्रों का गूढ ज्ञान प्राप्त करने के साथ ब्रह्मत्व भी प्राप्त किया जीवन के व्यवहारिक और आध्यात्मिक पक्ष की सत्यता को जानने वे हमेशा यत्न करते थे काशी में भी रहकर उन्होंने इसी प्रकार के अनुभव प्राप्त किये । गृहस्थ जीवन में मनुष्य के समक्ष क्या कठिनाईयाँ होती है क्या अनुभव होते है इसे जानने के लिये आदि शंकराचार्य ने मंडन मिश्र के साथ हुये शास्त्रार्थ के दौरान परकाया प्रवेश द्वारा उस यथार्थ अनुभव को प्राप्त किया जो सन्यासी के लिये वर्जित होती है आदि शंकराचार्य सत्य को जानने के लिये वर्जनाओं को तोडऩे से परहेज नहीं करते थे।

किवदंति है कि आदि शंकराचार्य को परकाया प्रवेश के पश्चात सिवनी के मठ तलाब में स्नान किया था और उसी समय से इस तालाब में स्नान से चर्म व्याधि दूर होने की बात कही जाती है । सिवनी जिला मुख्यालय में स्थित प्राचीन मठ मंदिर, सनातन धर्मावलंबियों की आस्था का केन्द्र होने के साथ ही ऐतिहासिक महत्व वाली धरोहर है इस मंदिर के इतिहास के बारे में अनेक किंवदंतियाँ जुड़ी होने के साथ मंदिर में आदि शंकराचार्य अपने देश भ्रमण के दौरान रूके थे और इस मंदिर के बाजू में जो तालाब है इस तालाब में उन्होंने स्नान किया था । इस प्रकार की किंवदंती बुजुर्गो द्वारा बतायी जाती है और बताया जाता है कि इस तालाब में स्नान से चर्मरोगो से मुक्ति मिलती है ।

उनके द्वारा स्थापित ‘अद्वैत वेदांत सम्प्रदाय’ 9वीं शताब्दी में बहुत अधिक लोकप्रिय हुआ। आदि शंकराचार्य ने प्राचीन उपनिषदों के सिद्धान्तों को पुनर्जीवन प्रदान करते हुये इसकी महत्ता को स्थापित किया। उन्होंने ईश्वर को पूर्ण वास्तविकता के रूप में स्वीकार किया और साथ ही इस संसार को भ्रम या मायाजाल बताते हुये परमात्मा की प्राप्ति को ही जीवन का अंतिम लक्ष्य बताया इस संसार को वास्तविक माना उन्होने अज्ञानता बताया और कहा है कि ज्ञानी इस भ्रम और माया में नहीं पड़ते । शंकराचार्य ने संन्यासी समुदाय में सुधार के लिए उपमहाद्वीप में चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की। ‘अवतारवाद’ के अनुसार, ईश्वर तब अवतार लेता है, जब धर्म की हानि होती है। धर्म और समाज को व्यवस्थित करने के लिए ही आशुतोष शिव का आगमन आदि शकराचार्य के रूप में हुआ।

 

 

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