धर्ममध्यप्रदेशसिवनी

आवश्यकता से अधिक चाहने वाले को भिखारी कहते है – अतुल रामायणी

  सिवनी यशो:- श्रीमद् भागवत कथा परमात्मा का शब्द रूपी श्री विग्रह है। पितृपक्ष में  भागवत कथा श्रवण से तीन पीढियां का उध्दार होता है। एकादशी व्रत कथा भागवत श्रवण से कठिन पिशाच और प्रेत योनि को भी मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। 
उक्ताश्य के प्रेरक प्रवचन, ख्यातिलब्ध विद्वान कथाकार पं.श्री अतुल रामायणी जी के मुखारविंद से, विंध्यवासिनी मंदिर गणेश चौक बरघाट रोड सिवनी में आयोजित ,कथा सत्संग में नि:सृत हुऐ। 
व्यास पीठ पर विराजित पंडित प्रभात तिवारी जी द्वारा श्रीमद् भागवत पुराण कथा की भूमिका सृजन करते हुए, ज्ञान और भक्ति का प्रसंग सुनाया गया। आपने जया एकादशी व्रत की कथा और महात्म्य विस्तार से बताया । 
विंध्यवासिनी सेवा धाम महिला मंडल मंदिर समिति द्वारा आयोजित इस धार्मिक आयोजन में( फोटो चित्र में दृष्टतव्य) बड़ी संख्या में मातृशक्ति एवं श्रद्धालु जन उपस्थित रहे। 
कथा व्यास पंडित प्रभात तिवारी जी के विनम्र आग्रह पर उपस्थित देश के प्रख्यात कथा व्यास पंडित श्री अतुल जी रामायणी ने, अपनी मंत्र मुक्त शैली में भागवत कथा की महिमा सुनते हुए कहा कि, भागवत कथा श्री हरि नारायण का बांग्मय(शब्द रूपी) श्रीविग्रह है । इस अमर कथा श्रवण के प्रभाव से कठिन से कठिन भूत पिशाच योनि को भी मुक्ति प्राप्त होती है। 
प्रसंगवश आप श्री ने भागवत में वर्णित धुंधकारी का वृतांत सुनाया । भागवत कथा श्री हरि नारायण के मुखारविंद से नि:सृत होकर वक्ता और श्रोता की परंपरा में अनादिकाल से वर्तमान तक तेज पुंज
 के रूप में विद्यमान है। भागवत परमहंसों की संहिता है, जो परमात्मा का साक्षात्कार कराती है। अतुल रामायणी
जी ने कहा कि “राजा कंस” तथा “राजा परीक्षित” को अपनी मृत्यु का निश्चित समय का बोध हो चुका था । अहंकारी कंस के पास लगभग 20 वर्षो ्का समय शेष था । इस समय का दुरुपयोग उसने देवकी /वासुदेव की आठवीं संतान “श्रीकृष्ण” को मारने की प्रतीक्षा में लगाया। किंतु  दुर्गति को ही प्राप्त हुआ। वहीं धर्मज्ञ”राजा परीक्षित ने अपने मृत्यु के शेष 7 दिन में,मोह माया का त्याग कर सुखदेव जी महाराज से भागवत कथा का श्रवण करके  मोक्ष और सद्गति को प्राप्त हुआ। 
आप श्री ने कहा कि निश्चित मृत्यु को टालना हराना संभव नहीं है ,किंतु जीवन के अल्प समय मैं भी आत्म कल्याण किया जा सकता है।

मजबूरी में भूखे रहना व्रत नहीं है,वरन भोजन सामने रहने पर भी उसका त्याग “उपवास” माना जाता है

 प्रसंगवश आप श्री ने “वास्तविक व्रत और उपवास” का निरूपण करते हुए कहा कि, भोजन के अभाव में भूखे रहना व्रत नहीं है, किंतु प्रचुर भोजन उपलब्ध रहने पर भी उसका त्याग कर सीमित मात्रा में फलाहार “उपवास” कहा जाता है। “भिखारी” और “भिक्षुक” के अंतर को समझाते हुए आपश्री ने कहा कि आवश्यक वस्तु मिल जाने पर तृप्त होने वाला “भिक्षुक” कहलाता है। किंतु आवश्यकता से अधिक चाहने वाला भिखारी कहलाता है । 
कथा प्रसंग के विराम अवसर पर ब्राह्मण समाज  पूर्व जिला अध्यक्ष- पं.ओमप्रकाश तिवारी ने  “परम पूज्य गुरुवर अनंत श्री विभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराजश्री” का पुण्य स्मरण करते हुए आज के सत्संग को परमानंद दायक और प्रेरक निरूपित किया। उन्होंने अतुल रामायणी जी एवं कथा व्यास पंडित प्रभात तिवारी जी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए   , विंध्यवासिनी मंदिर मातृशक्ति समिति का आभार माना। 

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