सहकारिता का किला टूटा: चालाकी और दोहरे पद के खेल में मानसिंह सनोडिया बाहर
भाजपा मंडल अध्यक्षी के बाद प्रशासक पद भी गया, अब जनपद सदस्य पर घिरते सवाल

सिवनी यशो :- सहकारिता की आड़ में वर्षों से पसरे असंतोष और अव्यवस्था को आखिरकार ग्रामीणों की आवाज़ ने परास्त कर दिया। जिले की चर्चित पैक्स चक्की खमरिया सोसायटी के प्रशासक मानसिंह सनोडिया को, लंबी जांच प्रक्रिया और ठोस साक्ष्यों के आधार पर, पद से हटा दिया गया है। यह फैसला न केवल ग्रामीणों की जीत का प्रतीक है बल्कि सहकारी व्यवस्था की गरिमा बहाल करने का भी सशक्त प्रयास माना जा रहा है।
14 वर्षों का वर्चस्व, और बढ़ते सवाल
मानसिंह सनोडिया पिछले चौदह वर्षों से प्रशासक की कुर्सी पर जमे रहे। इस दौरान उनकी कार्यप्रणाली को लेकर लगातार सवाल उठते रहे। ग्रामीणों का आरोप था कि सोसायटी के कामकाज में मनमानी, जवाबदेही से परे निर्णय और सहकारिता की मूल भावना से खिलवाड़ किया गया।
संयुक्त जांच समिति की रिपोर्ट
शिकायतों की गंभीरता को देखते हुए सहकारी विभाग ने म.प्र. सहकारी अधिनियम 1960 की धारा 59 के तहत जांच के आदेश दिए। वरिष्ठ सहकारी निरीक्षक एन.डी. कटरे और सहकारी निरीक्षक कमलेश मरावी की संयुक्त समिति गठित हुई। विस्तृत पड़ताल के बाद समिति ने यह स्पष्ट किया कि आरोप निराधार नहीं बल्कि कानूनी उल्लंघन से जुड़े तथ्य हैं।
चालाकी से नियमों का दुरुपयोग
जांच में यह भी सामने आया कि मानसिंह सनोडिया ने सहकारिता नियमों का चालाकी से दुरुपयोग किया। एक ओर वे सोसायटी के प्रशासक बने रहे, वहीं दूसरी ओर जनपद पंचायत कुरई के सदस्य पद पर निर्वाचित भी हुए।
म.प्र. सहकारी सोसायटी अधिनियम 1960 की धारा 48-ए/क (4) के अनुसार, ऐसे में सोसायटी का पद स्वतः रिक्त हो जाता है।
लेकिन नियमों को नजरअंदाज कर वे प्रशासक बने रहे,
जो न केवल सहकारिता के मूल्यों के खिलाफ था,
बल्कि जनप्रतिनिधित्व की शुचिता पर भी प्रश्नचिह्न था।
विरोधियों की सक्रियता और राजनीतिक पृष्ठभूमि
इस पूरे घटनाक्रम को विरोधी गुट ने एक बड़ा मुद्दा बना लिया है।
जानकारी के अनुसार, कुछ दिन पूर्व ही राजनीतिक विरोधियों ने प्रयास कर सनोडिया को भाजपा के मंडल अध्यक्ष पद से हटवाने में सफलता पाई थी।
अब प्रशासक पद से हटने के बाद उनकी जनपद सदस्यता पर भी सवाल उठाए जाने की तैयारी है।
अर्थात, यह कार्रवाई केवल सहकारिता की नहीं बल्कि स्थानीय राजनीति की शक्ति-परीक्षा भी है।
ग्रामीणों की सतत आवाज़ ने तोड़ी चुप्पी
हालांकि राजनीतिक समीकरण चाहे जो हों,
ग्रामीणों और सोसायटी सदस्यों की सतत शिकायत और
दस्तावेज़ों के आधार पर ही यह कार्रवाई संभव हो सकी।
2022 के पंचायत चुनाव की निर्वाचित सूची और
प्रमाणिक साक्ष्यों ने साबित कर दिया कि प्रशासक का पद वैधानिक रूप से रिक्त था।
निष्कर्ष
चक्की खमरिया सोसायटी का यह प्रकरण केवल सहकारिता तक सीमित नहीं है।
यह इस बात का उदाहरण है कि –
नियमों का दुरुपयोग और राजनीतिक चालें जब टकराती हैं,तब जनता की सतत आवाज़ और कानून की पकड़ अंततः निर्णायक बनती है।