Seoni 24 November 2025
सिवनी यशो:- विकासखंड सिवनी के ग्राम थिगरीपार के निवासी संतोष कुमार बघेल आज क्षेत्र के अग्रणी एवं प्रेरणादायी पशुपालकों में गिने जाते हैं। कभी पारंपरिक पशुपालन तक सीमित रहे संतोष बघेल ने मेहनत, लगन और आधुनिक तकनीक को आधार बनाकर पशुपालन को एक लाभकारी व्यवसाय का रूप दिया और आज वे आत्मनिर्भर ही नहीं, बल्कि अन्य युवाओं के लिए भी सफलता का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।
उनके परिवार में पशुपालन पीढ़ियों से रहा है। पिता जगदीश सिंह बघेल देशी गायों और भैंसों का पारंपरिक तरीके से पालन करते थे, लेकिन सीमित दूध उत्पादन और नाममात्र की आमदनी से परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं हो पा रही थी। इसी परंपरा में पलकर संतोष ने 2018 में जीवन का निर्णायक कदम उठाया — पशुपालन को परंपरा नहीं, बल्कि वैज्ञानिक तरीके से संचालित व्यवसाय के रूप में अपनाने का संकल्प।
उन्होंने पशुपालन विभाग से संपर्क कर आधुनिक डेयरी तकनीकों की जानकारी प्राप्त की। आचार्य विद्यासागर गौ संवर्धन योजना के अंतर्गत 6 लाख रुपये का बैंक ऋण एवं अनुदान प्राप्त कर ‘आराध्या डेयरी फार्म’ की स्थापना की। 08 एच.एफ. नस्ल की गायों से शुरू हुई यह डेयरी आज क्षेत्र की उन्नत डेयरियों में शामिल है। बेहतर दूध उत्पादन के लिए उन्होंने अपने खेत में नेपियर और बरसीम घास का उत्पादन प्रारंभ किया, जिससे वर्षभर पशुओं को हरा चारा उपलब्ध रहता है।

15 लाख रुपये की होती है शुद्ध आय
संतोष बघेल ने वर्ष 2020 में “पशुपालन आधारित किसान क्रेडिट कार्ड योजना”का लाभ लेकर पंजाब नेशनल बैंक से 1 लाख 60 हजार रुपये की सहायता राशि प्राप्त की, जिसका उपयोग उन्होंने पशुओं के संतुलित आहार, दवाइयों, साफ-सफाई और उपकरणों की व्यवस्था हेतु किया।
परिणामस्वरूप उनके पशुधन में वृद्धि हुई और
अब उनके पास 21 उन्नत एच.एफ. नस्ल की गायें हैं, जिनसे प्रतिदिन लगभग 320 लीटर दूध का उत्पादन होता है।
आज वे अपने डेयरी उत्पादों का विक्रय कर प्रति वर्ष लगभग 40 लाख रुपये का कारोबार करते हैं,
जबकि खर्च घटाने के बाद उन्हें लगभग 15 लाख रुपये की शुद्ध आय होती है।

डेयरी के साथ-साथ वे गोबर खाद का उपयोग कृषि में कर मिट्टी की गुणवत्ता सुधार रहे हैं,
वहीं घर में बायोगैस संयंत्र से स्वच्छ ऊर्जा भी प्राप्त कर रहे हैं।
संतोष बघेल ने सिद्ध कर दिया है कि-
यदि इच्छाशक्ति, परिश्रम और तकनीक का समन्वय हो,
तो पशुपालन भी उत्कृष्ट रोजगार और आत्मनिर्भरता का माध्यम बन सकता है।
आज वे न केवल अपने परिवार की आर्थिक समृद्धि के सूत्रधार हैं,
बल्कि आसपास के किसानों,
युवाओं और पशुपालकों को प्रशिक्षण एवं मार्गदर्शन देकर उन्हें भी आत्मनिर्भर होने की राह दिखा रहे हैं।
अब ग्राम थिगरीपार का यह युवा पशुपालक सिर्फ दूध नहीं, बल्कि प्रेरणा भी बेच रहा है —
समृद्धि की प्रेरणा, आत्मनिर्भरता की प्रेरणा और आधुनिक ग्रामीण विकास की प्रेरणा
https://www.jagran.com/bihar/kaimoor-urmila-became-an-example-of-selfreliance-19476469.html



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